18/06/2012

कर परिवर्तन आज

कर परिवर्तन आज समय बदल दे
चल आज जीवन का रूख बदल दे

नाम बदलना तू नीयत नही
काम बदलना तू जीरत नही

चल बढ़ा कदम अब मत ठहर
हो परिवर्तन तू कुछ कर गुजर

अंधविश्वास तू करना छोड़ दे
आडम्बरो को हे अब तू तोड़ दे

मत उलझ हे तू जाति धर्म में
ध्यान दे बस तू अब सुकर्म में

ना दौड़ हे तू ऐसे रुपये के पीछे
आ चल मिलकर प्रेम के पेड़ सींचे

ना किसी की बातों में तू बहकना
जो दिल में तेरे बस कर गुजरना

कर परिवर्तन आज समय बदल दे
चल आज जीवन का रूख बदल दे

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -२०-०४-२०१२
ग्वीन, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

ऐ मेरे भारत देश महान

ऐ मेरे भारत देश महान
कुछ तो ले अब जरा संज्ञान
१०० में से ९९ नेता बेमान
रोज ले रहे जनता की जान

देख बढती ही जा रही महंगाई
जायजा ले ले जरा अब तो
क्या न देखने की कसम है खाई
देख जरा कैसी बीमारी है आई

कैसे कट रही है ये जिंदगी
देख जरा गरीबों की लाचारी
और मजे से जी रहे हैं यहां
देख जनता के लुटेरे भ्रष्टाचारी

प्रतिदिन जनसंख्या बढ़ रही है
मुश्किल से जिंदगी कट रही है
नेताओं के चक्कर में यहां अब
इस देश की जनता बंट रही है

देख कैसी-२ बीमारी फ़ैल रही है
जनता मर-२ कर सब झेल रही है
जिनके हाथ में सौप दिया उपाय
देख तो वो इनसे कैसे खेल रही है

घर से बाहर निकलते ही यहां
अब तो रोज रिश्वत लगती है
भ्रष्टाचारियों से लुटे बगैर अब
जिंदगी यहां सबकी तो कटती है

बचपन सड़कों पर कट रहा है
जवानी बेरोजगारी में जी रहा है
बुढ़ापा दर-दर ठोकर खा रहा है
ए भारत माँ देख क्या हो रहा है

कहीं इतिहास न बन कर रह जाये
जाग जा खतरे में है तेरी महिमा
इस देश में नेता अब देख तो जरा
कैसे कुचल रहें रोज तेरी गरिमा

बढ़ रहे हैं रोज अब तो अत्याचार
सुन ले अब तो जनता की सीत्कार
खोल आँखें और कान जरा अब तो
सुन ले रावत अनूप की ये पुकार

ऐ मेरे भारत देश महान
कुछ तो ले अब जरा संज्ञान

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -१९-०३-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

जन्मदिन की बधाई पर कविता

आपके जन्मदिन की शुभ वेला,
लगा बहारों का है मेला।
आपकी खुशियों से खुश होकर,
मौसम भी लगता अलबेला॥

मौसम भी कैसा हो गया सुहाना,
क्योंकि आपका जन्मदिन था आना।
झूम झूम कर सारी दुनिया गाये,
जन्मदिन मुबारक आपको ये गाना॥

देखो झूम रहा है सारा आसमान,
सदा खुश रहे आपका ये जहान।
खुश रहो सदा दुआ है हमारी,
पूरे हो आपके हमेशा सारे अरमान॥

यूं ही जन्मदिन आपका आता रहे,
हर वर्ष आपको यूँ ही हर्षाता रहे।
जीवन हो मस्ती से पूरित आपकी
गीत खुशी के यूं ही गाता रहे॥

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -१९-०३-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

रुपया हो गया अठन्नी और अठन्नी गायब (मंहगाई)

बढती ही जा रही है मंहगाई देखो भाई साहब
रुपया हो गया अठन्नी और अठन्नी गायब..

हर पल आम आदमी को यह तो सता रही है
तेज गति से रोज मंहगाई देखो दौड़ रही है
हर किसी के दामन से खुशियाँ छीन रही है
खून आम आदमी का अब ये निचोड़ रही है

आमदनी है अठन्नी, तो घर खर्चा है रुपय्या
घरवाली बोले और चाहिए रुपये ओरे सैय्यां
कैसे पार लगाऊ मैं अब अपने घर की नैय्या
कैसे कटे जिंदगी अब आप ही बताओ भैय्या

पहले प्याज काटो तो तब ही आंसू आते थे
अब तो प्याज का भाव सुनकर आ जाते हैं
एक टमाटर को अब चार सब्जी में खाते हैं
मंहगाई घटना तो गुजरे ज़माने की बातें हैं

वादे करके सारे नेता हो गये देखो कैसे गोल
अब तो हर रोज बढे है गैस, डीजल, पेट्रोल
मंहगाई का रस जिंदगी में ऐसे न अब घोल
कैसे होगा सब ठीक अब हे प्रभु कुछ बोल

पढ़ना लिखना भी हो गया है अब तो महंगा
स्कूली ड्रेस, बस्ता, पेन सब हो गया महंगा
तन ढकना भी मुश्किल हो गया है अब तो
कमीज पैंट धोती कुरता चुनरी और लहंगा

नमक महंगा तो शक्कर हो गयी नमकीन
कम होगी मंहगाई सरकार बस बजाये बीन
मुश्किल से हो पाए दो वक्त की रोटी का गुजारा
सब हो गये हैं कैसे इस बीमारी से दीन-हीन

न जाने किस जन्म की गलती की है सजा
दिन रात पड़े है अब तो यह महंगाई की मार
नमक छिड़कने ऊपर से आ जाये भ्रष्टाचार
सजा मिले किसी को तो कोई और कसूरवार

हे प्रभु रावत अनूप करे बस इतनी सी विनती
इस मंहगाई डायन से हमको लो अब बचालो
हमारे जीवन की गाड़ी अब पटरी पर लगालो
कलयुग में कोई चमत्कार अब तो करवालो

बढती ही जा रही है मंहगाई देखो भाई साहब
रुपया हो गया अठन्नी और अठन्नी गायब..

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -१६-०३-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

देखा मैंने उन्हें कुछ यूं

देखा मैंने उन्हें कुछ यूं
सड़क किनारे कुछ ढूंढते हुए
कचरे के ढेर में कुछ तलाशते हुए

जल्दी थी हमें वहां से जाने की
और हम नाक बंद कर रहे थे
पर प्रसन्न से वो दिख रहे थे
वो अपनी रोजी रोटी ढूढ़ रहे थे

फ़ेंक दिया जिसे हम लोगों ने
उसे वो ध्यान से टटोल रहे थे
मिलता जैसे ही कुछ कूड़े में
वो लोग बहुत खुश हो रहे थे

कुछ बच्चे कुछ बूढ़े कुछ जवान
कूड़े के ढेर पर था सबका ध्यान
थैला था एक बड़ा सा यूँ हाथ में
एक डंडा भी था उनके हाथ में

कपडे थे उन लोगों के बड़े मैले
भर रहे थे वो कूड़े से अपने थैले
थैले होते जा रहे थे उनके भारी
हे प्रभु कैसी है ये गरीबी लाचारी

दिन भर कूड़े के ढेर पर बैठे हैं
रात को सड़क किनारे झोपडी में
न जाने कैसे वो जमीन पर सोते हैं
कभी हँसते, कभी किस्मत पर रोते हैं

हे प्रभु यह कैसा संसार रचा दिया
कोई राजा तो कोई रंक बना दिया
हे प्रभु बस इतना सब को देदो
कट जाये जिंदगी आराम से देदो

न कोई छोटा न कोई बड़ा हो यहां
भेदभाव का नामों निशां न रहे यहां
रच दो ऐसी लीला अब तो हे प्रभु
एक सा हो जाये ये सारा अब जहां

सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
"गढ़वाली इंडियन" दिनांक -१०-०३-२०१२
बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)